Kharif 2025 Agri Focus: Why Farmers Should Prioritize Soybean & Paddy This Season
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सोयाबीन की खेती एक तिलहनी फसल के रूप में की जाती है, क्योकि इसके बीजो से अधिक मात्रा में तेल प्राप्त होता है सोयाबीन को गोल्डन बीन्स भी कहा जाता है। पिछले दो दशकों में सोयाबीन तेल की खपत में अभूतपूर्व वृद्धि देखि गयी है जिसके कारण सोयाबीन की खेती मध्य भारतीय राज्यों में बढ़ी है जहां मौसम उपयुक्त है। खरीफ सीजन में यह किसानों की पसंद की फसल बन गई
सोयाबीन मुख्य रूप से मध्य प्रदेश (एमपी), महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश (एपी) ,तेलंगाना, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक इत्यादि जगहों में की जाती है । मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सोयाबीन उत्पादन का प्रमुख हिस्सा है, जो प्रति वर्ष लगभग 100 मिलियन मीट्रिक टन है।

क्या है पीला मोजेक रोग? (What is Yellow Mosaic Disease?)
सोयाबीन मोजेक वायरस जनित रोग है पॉटीवायरस के कारण होता है। जो मुख्यतः सफेद मक्खी (White Fly) के चपेट में आने से लगता है. इस रोग से ग्रस्त पौधों की पत्तियों पर सफ़ेद मक्खी के बैठने के बाद अन्य पौधों पर बैठने से रोग पुरे खेत की फसलों में फ़ैल जाता है। लगातार वर्षा होने पर इस रोग के संक्रमण का असर फसलों पर नहीं होता है। किन्तु यदि वर्षा तीन – चार दिन के अंतराल पर होती है, तो सफ़ेद मक्खी के द्वारा फसलों में संक्रमण फैलने की संभावना बढ़ जाती है।

सोयाबीन के साथ-साथ यह अन्य दलहनी फसलों को भी प्रभावित करता है। यदि रोग की गंभीरता बढ़ जाती है तो सोयाबीन की उपज 50 से 90 प्रतिशत तक कम हो जाती है। यह एक वायरस जनित रोग है,
पीला मोजेक रोग की पहचान (Symptoms of Yellow Mosaic Disease)

पीला मोजेक रोग से बचाव के उपाय (Yellow Mosaic Disease Managment)
फसलों में पीला मोजेक रोग से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय करना चाहिए :