ಜಿ9-ಬಾಳೆ: ಕರ್ನಾಟಕ ರೈತರಿಗೆ ಮಾರ್ಗದರ್ಶಿ
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धान में जिंक का महत्व
चावल (धान) भारत की सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसलों में से एक फसल है और भारत की लगभग 60 प्रतिशत से अधिक आबादी के भोजन का यह एक मुख्य स्त्रोत है
चावल देश के लगभग सभी राज्यों में उगाया जाता है लेकिन पश्चिम बंगाल, यूपी, आंध्र प्रदेश , पंजाब और तमिलनाडु चावल उत्पादन में सबसे अग्रणी राज्यों में से एक है।
लेकिन इन सबके बावजूद हमारे देश में प्रति हेक्टेयर उत्पादन अन्य देशों के मुकाबले काफी कम है। इसका मुख्य कारण धान में लगने वाले कीट एवं रोगों , और पोषक तत्वों का सही प्रबंधन नहीं होना है

धान (चावल) की खेती में जिंक (Zn) का महत्व
पौधों के अच्छी बढ़वार और अधिक उत्पादन के लिए सूक्ष्म पोषक तत्त्व अत्यंत महत्वपूर्ण होते है। आमतौर पे सूक्ष्म पोषक तत्व पौधों के लिए कम मात्रा में आवश्यक होते है, लेकिन पौधे के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते है जिसमे जिंक सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्त्व है, जिंक , पौधों के लिए आवश्यक 8 सूक्ष्म पोषक तत्वों में से एक है|

धान में जिंक पोषक तत्व के फायदे
मिटटी में जिंक की उपलब्धता को सीमित करने वाले कारक
खैरा रोग
धान में जिंक की कमी से खैरा रोग होता हैं | धान के फसल में विभिन्न प्रकार के होने वाले रोगों में से, खैरा रोग फसल के लिए सबसे नुकसानदायक होता है |
खैरा रोग धान रोपने के बीस से पच्चीस दिनों के अंदर दिखने लगते हैं. इस रोग के लग जाने से पौधे के विकास से लेकर उसका पुष्पण,फलन व परागण प्रभावित हो जाता है पोधों में दाने नहीं बनते और उपज में भी लगभग 25-30 प्रतिशत की हानि हो जाती है | इसलिए समय रहते इसका निवारण करना आवश्यक होता है
धान में खैरा रोग की पहचान और समाधान
धान के पौधे में जिंक की कमी (खैरा रोग) होने पर इकी पत्तियां पहले हल्की पीली पड़ने लगती है और कुछ समय बाद उनमे भूरे या लाल रंग के धब्बे बनने लगते है , इसके अलावा पौधों का विकास भी रूक जाता है तथा बाद में ये पत्तियां सिकुड़ने व मुरझाने लगती हैं.
धान की खेती के लिए जिंक का उत्तम स्रोत क्या है?
धान की फसल को खैरा रोग से कैसे बचाएं