गुलाबीसुंडीकीसमस्याकासही उपाय, मल्टीप्लेक्स मिंचू प्लस के साथ
कपास या नरमा विश्व स्तर पर सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक फसल है, जिसे अक्सर "सफेद सोना" भी कहा जाता है। भारत में कपास तीन अलग-अलग कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों में उगाया जाता है: उत्तरी क्षेत्र (पंजाब, हरियाणा और राजस्थान), मध्य क्षेत्र (गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश), और दक्षिणी क्षेत्र (आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और) कर्नाटक)।
भारत में हाल के कुछ सालों से कई क्षेत्रों में कपास पर गुलाबी सुंडी (पिंक बॉल वर्म) का हमला मुख्य समस्या के रूप में उभर कर आई है। जिसके हमले से लगभग 30 से 50 प्रतिशत तक की फसल को क्षति पहुँचती है.
गुलाबी सुंडी का प्रकोप फसल के मध्य तथा देर की अवस्था में होता है। गुलाबी सुंडी की लटें फलीय भागों के अंदर छुपकर तथा प्रकाश से दूर रहकर नुकसान करती हैं जिसके कारण इस कीट से होने वाले नुकसान की पहचान करना कठिन होता है, और फसल को अधिक नुकसान होता है।
गुलाबी सुंडी (Pink Bollworm) क्या है? –
गुलाबी सुंडी (पेक्टिनोफोरा गॉस्सिपिएला) कपास की खेती में पाया जाने वाला एक कीट है।एक छोटी भूमिगत कीट है। गुलाबी सुंडी रात को सक्रिय रहने वाला कीट है नमी के वातावरण में यह बहुत एक्टिव हो जाता है. खास बात यह है कि यह कीट फसल की अंतिम अवस्था तक बना रहता है.
मादा सुंडी कपास के डेंडू पर अंडे देती है और अंडों से लार्वा निकलने पर, वे डेंडुओं को खाकर उन्हें नुकसान पहुंचाना शुरू कर देते हैं। वे कपास के रेशे को चबाते हुए बीजों को अपना आहार बनाते हैं।
किसान इस तरह करें गुलाबी सुंडी की पहचान
वयस्क कीट एक छोटा, पतला, धूसर रंग का छब्बेदार पंखों वाला पतंगा होता है। लार्वा एक धुंधले सफेद रंग की आठ जोड़ी पैरों वाली इल्ली होती है, जिसके धड़ पर स्पष्ट गुलाबी रंग की पट्टियां होती है। लार्वा आधा इंच तक लंबा हो सकता है।
अंडे हल्के गुलाबी व बैंगनी रंग की झलक लिए होते हैं, जो कि प्रायः नई विकसित पत्तियों व कलियों पर पाए जाते हैं। प्रारम्भिक अवस्था में लटों का रंग सफ़ेद होता है, जो कि बाद में गुलाबी हो जाते हैं। पूर्ण विकसित लटों की लम्बाई 10 से 12 मि.मी. होती है।
गुलाबी सुंडी का जीवन चक्र
नुकसान के लक्षण
लार्वा गुलाबी सुंडी से होने वाले नुकसान के लक्षण द्वारा खाए गए डेंडुओं के छिद्रों पर अवशिष्ट देखे जाते हैं। डेंडुओं को खोलने पर, क्षतिग्रस्त बीज पाए जाते हैं।
वे दो जुड़े बीजों में खिडक़ीनुमा छिद्र (इंटरलोकुलर बरोइंग) बना देते हैं जिससे उन्हें ‘‘दोहरे बीज’’ का रूप मिल जाता है।
कलियों पर हमला होने से कच्चे डेंडू झड़ जाते हैं।
बदरंग रेशे तथा खोखले बीज।
गुलाबीडेंडूसुंडीकीरोकथाम
इस्तेमाल करें मिंचू प्लस, मिंचू प्लस दो प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों और उनके मेटाबोलाइट्स का मिश्रण है। जिसमे एक बैसिलस थुरिंजिएन्सिस कुर्स्ताकी (बीटीके), एक मिट्टी से उत्पन्न एरोबिकऔर दूसरा सक्रिय भाग स्कैक्रोपॉलीस्पोरा स्पिनोसा है, जो मिट्टी में पैदा होने वाला एक्टिनिमोसेट्स है, जो न्यूरो-टॉक्सिन के रूप में कार्य करके कीड़ों को मारता है।
यह मुख्य रूप से पत्तियों को चबाने वाले कीड़ो और इल्लियों / सुंडी से निजात पाने के लिए काफी प्रभावी होता है . खासतौर पर कपास में गुलाबी सुंडी और मक्के की फसल में फॉल आर्मी वर्म के लिए बहुत असरदार कीटनाशक दवा है
डोज़औरइस्तेमालकेतरीके:
एक लीटर पानी में 2 से 3 मिलीलीटर मल्टीप्लेक्स मिंचू + मिलाएं और पत्तियों की दोनों तरफ पर स्प्रे करें। हम 2 से 3 स्प्रे की सलाह देते है। मिंचू + का पहला छिड़काव नए जन्मे लार्वा दिखते ही करना चाहिए । अगला स्प्रे १०-१५ दिनों के अंतराल में किया जाना चाहिए
बायोलॉजिकलतरीका
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