खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बुआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गयी फसलों को कई प्रकार से नुकसान पहुंचाते हैं। मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्व, नमी स्थान/जगह और प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। इससे फसल के उत्पादन में कमी होती है। इन सबके साथ-साथ कुछ खरपतवार ऐसे भी होते हैं, जिनके पत्तों व जड़ों से मृदा में हानिकारक पदार्थ निकलते हैं। इससे पौधों की वृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ता है जैसे-गाजर घास (पार्थीनियम) एवं धतूरा आदि न केवल फार्म उत्पाद की गुणवत्ता को घटाते हैं, बल्कि मानव तथा पशुओं के स्वास्थ्य के प्रति नुकसानदायक हैं।
गेहूं की भरपूर और स्वस्थ उपज प्राप्त करने के लिए सही समय पर खरपतवार का नियंत्रण करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता अक्सर खरपतवार कई हानिकारक कीड़े और रोगों का भी घर बन जाता हैं। इसके साथ-साथ ये फसलों के नुकसानदायक कीटों तथा रोगों को भी आश्रय देकर फसलों को क्षति पहुंचाते हैं। यदि सही समय पर खरपतवारों का नियंत्रण नहीं किया जाता है, तो फसल उत्पादन में ५० से 60 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है और किसानो को बड़ा आर्थिक नुक्सान भी उठाना पड़ता है इनका नियंत्रण भी एक कठिन समस्या है, किन्तु हाल के वर्षों में अनुसंधान से यह सिद्ध हो चुका है कि इनका नियंत्रण प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।
सारणी 1. खरपतवारों में शाकनाशी रसायनों द्वारा नियंत्रण
सल्फोसल्फ्यूरॉन 75 प्रतिशत मेटसल्फ्यूरॉन 5 प्रतिशत
(Sulfosulfuron 75 % Metasulfuron 5 %)
बुआई के 30-35 दिनों बाद
क्लोडिनोफॉप
clodinofop
बुआई के 30-35 दिनों बाद
फीनाक्सीप्रॉप-इंथाइल
(phenoxyprop-ethyl)
बुआई के 30-35 दिनों बाद
पीनाक्साडेन
(pinoxaden)
बुआई के 30-35 दिनों बाद
सल्फोसल्फ्यूरॉन
Sulfosulfuron
बुआई के 30-35 दिनों बाद
चौड़ी पत्ती वाले घास के लिये
मेटसल्फ्यूरॉन
Metasulfuron
बुआई के 30-35 दिनों बाद
कारफेनटाजोन
(Carfentrazone)
बुआई के 30-35 दिनों बाद
बुआई के 30-35 दिनों बाद
संकरी एवं चौड़ी पत्ती वाले घास के लिये
आइसोप्रोट्यूरॉन
(Isoproturon
बुआई के 30-35 दिनों बाद
मीसोसल्फ्यूरॉन+आयोडोस लफ्यूरॉन ऎटलेंनटीस 3.6
(Sulfosulfuron 75 % Metasulfuron 5 %)
बुआई के 30-35 दिनों बाद
कम तापमान रहने के कारण यद्यपि रोगों का खतरा कम रहता है परन्तु फफूंदजनित रोग के लक्षण दिखाई देने पर प्रोपिकोनाजोल का 0.1 प्रतिशत अथवा मैन्कोजेब 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव किया जा सकता है। गेहूं की फसल को चूहों से बचाने के लिए जिंक फॉस्फाइड या एल्यूमिनियम फॉस्फाइड की टिकिया से बने चारे का प्रयोग कर सकते हैं।
Narrow Leaf
Broad Leaf
आवश्यक सुझाव
खरपतवार रोधी गेहूँ के बीज का प्रयोग करें।
गेहूँ की बीजाई 15 नवम्बर से पहले करें।
दो लाईन में कम दूरी रखें (18 सेमी.) ।
गेहूँ के पौधों की संख्या बढ़ाने के लिए आड़ी-तिरछी बीजाई करें।
खाद को बीज के 2-3 सेंटीमीटर नीचे डालें।
मेढ़ पर बीजाई करने से भी मंडूसी का प्रकोप कम होता है।
मेढ़ों तथा पानी की नालियों को साफ़ रखें।
जल्दी पानी लगाकर मंडूसी को उगने दें तथा फिर दवाई या खेत को जोत कर इसे खत्म करने के बाद गेहूँ की बीजाई करें।
गेहूँ की जल्दी बढ़ने वाली किस्में उगायें।
खरपतवार नाषक के प्रयोग में सावधानियां :-
फसलों में उपस्थित खरपतवारों के प्रकार एवं अवस्था के अनुसार खरपतवारनाषकों का चुनाव करना चाहिए।
हमेशा अनुषंसित खरपतवार नाषकों का प्रयोग करें एवं इनकी खरीदारी विश्वस्त स्त्रोत से करना चाहिए।
खरपतवारनाषकों का प्रयोग अनुषंसित मात्रा से कम या ज्यादा नहीं करना चाहिए।
खरपतवारनाषकों के छिड़काव के पूर्व पम्प को आवष्यतानुसार समायोजित कर लेना चाहिए।
खाली पेट खरपतवारनाषकों का छिड़काव नहीं करना चाहिए।
खरपतवारनाषकों का छिड़काव की दिषा हवा के दिषा के विपरीत नहीं होना चाहिए।
शरीर का कोई अंग या भाग खरपतवारनाषकों के सम्पर्क में कम से कम आना चाहिए, इसके लिए आवष्यक है कि छिड़काव करते समय दस्ताना, फुल पैंट, फुल कमीज एवं जूता पहनें।
प्रत्येक बार स्प्रे टैंक में खरपतवारनाषक के घोल को तैयार करते समय ठीक से हिला एवं मिला लेना चाहिए।
खरपतवारनाषकों को अदल-बदल कर प्रयोग करना चाहिए (खरपतवार चक्र अपनायें) लगातार एक हीं खरपतवारनाषक के प्रयोग से खरपतवारों में खरपतवारनाषक के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है तथा पुराने खरपतवारों की जगह ये खरपतवार उग जाते हैं एवं पुराने खरपतवारों की जगह ले लेते हैं।
छिड़काव के बाद खरपतवारनाषकों के बचे घोल को मुख्य खेत में न फेंके, अगर फेंकना हा तो बिन जोत वाले खेत में फेंकें।
स्प्रे करने वाले पम्प को छिड़काव के बाद डिटर्जेंट से अवष्य घुल देना चाहिए।
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