धान के बाद गेहूं भारत की प्रमुख फसल है. गेहूँ उत्तर भारत में रबी में उगाई जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण फसलों में से एक है। औसत सिंचाई वाले क्षेत्र में अनाज के लिए गेहूं की फसल को ज्यादा पसंद किया जाता है। भारत में उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और बिहार प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य हैं
फसल वर्ष 2022-23 में गेहूं का बंपर उत्पादन हुआ है. केंद्र सरकार के अनुसार 1127.43 लाख टन गेहूं उत्पादन अनुमानित है, जो पिछले साल के मुकाबले 50.01 लाख टन ज्यादा है. भारत गेहूं का बड़ा निर्यातक है.
अधिक लागत वाली फसल होने की वजह से अनेक कारक जैसे खरपतवार ,कीट ,कीटाणु रोग इत्यादि फसल के जीवन चक्र के दौरान उसके विकास दर एवं उपज को निर्धारित करते हैं।
कुछ प्रमुख रोग जैसे पीला रतुआ (Yellow Rust), करनाल बंट ,खुली करियारी, पूर्ण झुलसा रोग आदि पौधे की वृद्धि जनन क्षमता एवं कार्यिकी पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। गत वर्षों के आंकड़ों के अनुसार पीला रतुआ गेहूं के सबसे खतरनाक और विनाशकारक रोगों में से एक है। इसे धारीदार रतुआ भी कहते है जो जो पक्सीनिया स्ट्राईफारमिस नामक कवक से होता है।
क्या है पीला रतुआ रोग (What is Yellow Rust in Wheat)
पीला रतुआ (yellow Rust in wheat) फसल की उपज में शत प्रतिशत नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखता है। इस बीमारी से उत्तर भारत में गेहूं की फसल का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों ही प्रभावित होती है।
फसल सत्र के दौरान हल्की बारिश उच्च आता एवं ठंडा मौसम पीला रतुआ के संक्रमण के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा करते हैं। इसी दौरान यदि तेज हवाएं चलती है तो इस बीमारी का प्रकोप दुगुना हो जाता है। उत्तर भारत में यह मेल जनवरी फरवरी के माह में उत्पन्न होता है।
रोग पहचान (Symptoms of Yellow rust in wheat)
यदि समय रहते खेत में इस रोग की पहचान कर ली जाए तो इसका नियंत्रण सुनियोजित प्रकार से किया जा सकता है।
प्रारंभिक पत्तों की ऊपरी सतह पर पीले रंग के छोटे छोटे धब्बे दिखना इस रोग का शरुआती लक्षण है। समय के साथ यह पीले धब्बे पाउडरनुमा धारियों में तबदील हो जाते हैं।
पत्तियों को छूने पर पीले रंग का हल्दी जैसा पाउडर हाथों पर लग जाता है। यह पीला पाउडर असल में कवक बीजाणु होते है जो रोग को , स्वस्थ पौधों तक फैलाने का कार्य करते हैं।
तापमान बढ़ते ही पत्ते का निचला हिस्सा काला पड़ने लगता है। रोगग्रस्त पौधे की पत्तियां सूख जाती है और अंततः पौधा संभावित उपज नहीं दे पाता।
खेतों में इस रोग का संक्रमण छोटे गोलाकर क्षेत्र से शुरू होता है जो धीरे धीरे पूरे खेत में फैल जाता है।
रोग उपचार (Chemical Control of yellow rust of wheat)
रोग प्रबंधन का सबसे प्रभावी एवं किसान रोगप्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करना है। अ
ज्यादा संक्रमण वाले क्षेत्रों में एहतियाती तौर पर बीजाई से पहले उपयुक्त फफूंदनाशक से बीज उपचार करना भी लाभकारी सिद्ध होता है।
(नोट: स्प्रे करने से पहले उत्पाद का लेबल जरूर अच्छी तरह से पढ़े )
जैविक विधि द्वारा पीला रतुआ का नियंत्रण (Biological control of yellow rust of wheat)
ट्राइकोडर्माद्वारा बीज शोधन करने से कवक जनित रोगो से मुक्ति मिल सकती है. बीज उपचार हेतु २० ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज के साथ बुवाई से पहले मिलाएं
अच्छी कृषि पद्धतियाँ, जैसे उचित रोपण घनत्व, उचित सिंचाई और समय पर खरपतवार नियंत्रण, पीले रतुआ की घटनाओं को रोकने में मदद कर सकती हैं
मिट्टी में इनोकुलम की मात्रा को कम करके रोग चक्र को तोड़ने के लिए फलियां, सरसों और जौ जैसी उपयुक्त फसलों के साथ मिश्रित फसल और फसल चक्र अपनाएं।
नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से बचें
इस प्रकार गेहूं की फसल को पीला रतुआ के प्रकोप से समय रहते बचाया जा सकता है ताकि कुल उपज एवं फसल की गुणवता पर न्यूनतम प्रभाव पड़े।
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